पर्यावरण एक मुद्दा नहीं, एक ऐसा संवेदनशील पक्ष है, जो मानव के साथ अंतरंग होना चाहता है, उसके साथ मिलकर जीना चाहता है। क्या हम अपनी संगति के इच्छुक पर्यावरण को तुष्टि दे रहे हैं? क्या उसके अमूल्य उपहारों के बदले में प्रदूषण ही उसका देय है? प्रस्तुत पुस्तक में पर्यावरण, प्रदूषण और उससे जुड़े सभी छाटे-मोटे पहलुओं को रखने का प्रयास किया है। यदि पाठकगण एक भी उपाय से सहमत होकर उसे अपना लेंगे तो मैं अपना प्रयास सार्थक मानूंगी।