
Vakri Grah (वक्री ग्रह)
Diamond Pocket Books Pvt Ltd
ISBN13:
9788171827657
$15.61
वक्री ग्रह कुण्डली में जातक विशेष के चरित्र-निर्माण की क्रिया में सहायक होते हैं। जिस भाव और राशि में ग्रह वक्री होते हैं, उस राशि व भाव सम्बन्धी फलादेश में काफी कुछ परिवर्तन आ जाता है। सूर्य और चन्द्रमा-दो ऐसे ग्रह हैं जो कभी वक्री नहीं होते। क्योंकि इनकी गति समानान्तर रूप से हमेशा पृथ्वी की गति से तेज (शीघ्रगामी) रहती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर उस गति से चल रही है, जिस गति से उसके समानान्तर कोई अन्य ग्रह चल रहा है। जब पृथ्वी वासी को ऐसा प्रतीत होगा कि अमुक ग्रह चलते-चलते स्थिर हो गया है। परन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि 'वक्री ग्रह' और 'स्थिर ग्रह' प्रत्यक्ष रूप से गति के अन्तर-प्रत्यन्तर के कारण आंखों से दिखलाई देने वाली भिन्न-भिन्न स्थितियां मात्र हैं। इस ग्रह स्थिति को भलीभांति समझ लेने के बाद ही हमें वक्री ग्रहों से वायुमण्डल एवं पृथ्वी वासी लोगों पर होने वाले प्रभाव का सूक्ष्मता से अध्ययन करना होगा।
- | Author: Bhojraj Dwivedi
- | Publisher: Diamond Pocket Books Pvt Ltd
- | Publication Date: Mar 19, 2025
- | Number of Pages: 00106 pages
- | Binding: Paperback or Softback
- | ISBN-10: 8171827659
- | ISBN-13: 9788171827657
- Author:
- Bhojraj Dwivedi
- Publisher:
- Diamond Pocket Books Pvt Ltd
- Publication Date:
- Mar 19, 2025
- Number of pages:
- 00106 pages
- Binding:
- Paperback or Softback
- ISBN-10:
- 8171827659
- ISBN-13:
- 9788171827657