शिक्षा विकास की वह प्रक्रिया है जो जीवनपर्यन्त सरिता के नीर की भांती कल-कल करती हुई निरन्तर प्रवाहित होती रहती हैं, मानव जीवन विकासशील एंव परिवर्तनशील है। मानव अपने जीवन के ऊषाकाल में पाशविक प्रवृत्तियां लेकर उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरुप उसे उचित एंव अनुचित कार्य में अन्तर करने का ज्ञान नहीं होता । आदि युग में दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि उस युग में मानव पशु नही तो पशुतुल्य अवश्य था । केवल भौतिक संसार ही उसके जीवन तक सीमित था। धीरे-धीरे उसने अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये अन्वेषण आरम्भ किये। मानव प्रयास निरन्तर अबाध गति से बौद्धिक शक्तियों के सहारे की गये तथा सभ्यता का विकास कला, विज्ञान, विभिन्न साहित्यों के रुप में हुआ । इस प्रकार मानवीय चेतना के आरम्भ से शिक्षा का प्रादुर्भाव हुआ । संसार में समस्त आकर्षक व भव्य वस्तुयें शिक्षा की ही देन है। शिक्षा के द्वारा ही मानव अपनी पाशविक प्रवृत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तीकरण करते हुये मानवता के उच्चतम शिखर पर पहुंच कर एक सामाजिक प्राणी बनने का सुअवसर प्राप्त करता है।
- | Author: Harish Kumar
- | Publisher: Wkrishind
- | Publication Date: Dec 12, 2023
- | Number of Pages: 100 pages
- | Binding: Hardback or Cased Book
- | ISBN-10: 8196818580
- | ISBN-13: 9788196818586